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ग़ज़ल
कब मेरा नशेमन अहल-ए-चमन गुलशन में गवारा करते हैं
ग़ुंचे अपनी आवाज़ों में बिजली को पुकारा करते हैं
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
सबा अफ़ग़ानी
ग़ज़ल
दस्त-ए-सय्याद भी आजिज़ है कफ़-ए-गुल-चीं भी
बू-ए-गुल ठहरी न बुलबुल की ज़बाँ ठहरी है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
इक गुल के मुरझाने पर क्या गुलशन में कोहराम मचा
इक चेहरा कुम्हला जाने से कितने दिल नाशाद हुए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
सिर्फ़ ख़ुश्बू की कमी थी ग़ौर के क़ाबिल 'क़तील'
वर्ना गुलशन में कोई भी फूल मुरझाया न था