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ग़ज़ल
दिल-ए-मुर्दा दिल नहीं है इसे ज़िंदा कर दुबारा
कि यही है उम्मतों के मर्ज़-ए-कुहन का चारा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
दिल-ए-पज़-मुर्दा को हम-रंग-ए-अब्र-ओ-बाद कर देगा
वो जब भी आएगा इस शहर को बर्बाद कर देगा
जमाल एहसानी
ग़ज़ल
अफ़्सुर्दा दिल था अब तो हुआ ग़म से मुर्दा-दिल
जीता हूँ देखने में वले मुझ में जाँ नहीं
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
किया करते हैं मुर्दा-दिल हमेशा मौत की बातें
जो ज़िंदा-दिल हैं वो तो ज़िंदगी की बात करते हैं
मक़बूल अहमद मक़बूल
ग़ज़ल
किया करते हैं मुर्दा-दिल हमेशा मौत की बातें
जो ज़िंदा-दिल हैं वो तो ज़िंदगी की बात करते हैं
मक़बूल अहमद मक़बूल
ग़ज़ल
ज़िंदा हो जाता हूँ मैं जब यार का आता है ख़त
रूह-ए-ताज़ा मुर्दा-दिल के वास्ते लाता है ख़त
श्याम सुंदर लाल बर्क़
ग़ज़ल
शौक़ ओ ज़ौक़ अब भी है बाक़ी मुर्दा-दिल हम हैं तो हैं
अपने दिल को हसरत-ए-सैर-ए-गुलिस्ताँ अब भी है
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
ग़ज़ल
दिल-ए-पज़-मुर्दा खिला जाता है क्यूँ आज बशीर
आ गई है कोई या ख़ुश-ख़बरी आती है
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
ग़ज़ल
यूँ किया बर्बाद उस गुल ने दिल-ए-पज़-मुर्दा को
फेंक दे है फूल जैसे कोई कुम्लाया हुआ
मुंतज़िर लखनवी
ग़ज़ल
दिल-ए-पज़-मुर्दा आशिक़ को तुम अपने सामने रखना
तमाशा रक़्स-ए-बिस्मिल का दिखाएगा तपाँ हो कर