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ग़ज़ल
हक़ीक़ी शा'इरी दाद-ए-सुख़न से भी हुई महरूम
बिला सर-पैर वाली शा'इरी पैसा बनाती है
साबिर शाह साबिर
ग़ज़ल
ना उन की गुदड़ी में ताँबा पैसा ना मनके मालाएँ
प्रेम का कासा दर्द की भिक्षा गीत ग़ज़ल दो है कविताएँ
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़ज़ल
शराब पैसा अना ख़्वाब इश्क़ या कि सुख़न
किसी भी शय का हो नश्शा ख़राब होता है