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ग़ज़ल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
जौन एलिया
ग़ज़ल
कहीं इस आलम-ए-बे-रंग-ओ-बू में भी तलब मेरी
वही अफ़्साना-ए-दुंबाला-ए-महमिल न बन जाए
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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कहीं इस आलम-ए-बे-रंग-ओ-बू में भी तलब मेरी
वही अफ़्साना-ए-दुंबाला-ए-महमिल न बन जाए