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ग़ज़ल
है जिन्हें सब से ज़ियादा दा'वा-ए-हुब्बुल-वतन
आज उन की वज्ह से हुब्ब-ए-वतन रुस्वा तो है
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
तज्रबे ने हुब्ब-ए-दुनिया से सिखाया एहतिराज़
पहले कहते थे फ़क़त मुँह से और अब करना पड़ा
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
दिल किए तस्ख़ीर बख़्शा फ़ैज़-ए-रूहानी मुझे
हुब्ब-ए-क़ौमी हो गया नक़्श-ए-सुलैमानी मुझे
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
इश्क़-ए-कामिल में तो हाजत अमल-ए-हुब की नहीं
क़ैस माशूक़ बना हो गई लीला आशिक़
पीर शेर मोहम्मद आजिज़
ग़ज़ल
नक़्श-ए-हुब चाल से निकल है मिरी इस ख़ातिर
मैं परी-ज़ादों की तस्ख़ीर किए जाता हूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
मैं मस्त-ए-बादा-ए-हुब्ब-ए-अली हूँ ऐ 'अंजुम'
कभी बहक न सके जो वो बादा-ख़्वार हूँ मैं
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
ग़ज़ल
इश्क़-ए-दीं हुब्ब-ए-वतन ज़ौक़-ए-अमल पास-ए-वफ़ा
जौहर-ए-इंसानियत हैं ये किसी दम-साज़ के