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ग़ज़ल
कभी भूके पड़ोसी की ख़बर तो ली नहीं उस ने
मगर करने वो उमरा और हज हर साल जाता है
अब्दुल हफ़ीज़ साहिल क़ादरी
ग़ज़ल
मोहब्बत है रमी शक पर मोहब्बत तौफ़-ए-महबूबी
सफ़ा मर्वा ने समझाया मोहब्बत हज्ज-ए-अकबर है
शहज़ाद क़ैस
ग़ज़ल
हर रोज़ माँ का चेहरा में तकता हूँ प्यार से
हर रोज़ हज मैं करता हूँ एहराम के बग़ैर
सय्यद सलमान गीलानी
ग़ज़ल
ये कैसे लोग हैं जो राह में नाचार बैठे हैं
बड़े नादाँ मुसाफ़िर हैं कि हिम्मत हार बैठे हैं
अल-हाज अल-हाफीज़
ग़ज़ल
ऐ सालिक इंतिज़ार-ए-हज में क्या तू हक्का-बक्का है
बघोले सा तू कर ले तौफ़-ए-दिल पहलू में मक्का है
वली उज़लत
ग़ज़ल
जिन के अच्छे हैं सनम उन के करम अच्छे हैं
उन के अच्छे हैं करम जिन के सनम अच्छे हैं