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ग़ज़ल
या रब ये जहान-ए-गुज़राँ ख़ूब है लेकिन
क्यूँ ख़्वार हैं मर्दान-ए-सफ़ा-केश ओ हुनर-मंद
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
निगह पैदा कर ऐ ग़ाफ़िल तजल्ली ऐन-ए-फ़ितरत है
कि अपनी मौज से बेगाना रह सकता नहीं दरिया
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अनवर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
यूँ हबाबों का न दिल तोड़ ख़ुदा-रा ऐ मौज
इन्हीं क़तरों के तो मिलने से है दरिया तेरा
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
नय्यर आस्मी
ग़ज़ल
अँधेरी रात से डरता है मीर-ए-कारवाँ हो के
अँधेरा है तो अपने दाग़-ए-दिल की रौशनी फैला