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ग़ज़ल
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
मिरे जीव आरसी में ख़याल तुज मुख का सो दिस्ता है
करे ऊ ख़याल मुंज दिल में निशानी ज़र-फ़िशानी का
क़ुली क़ुतुब शाह
ग़ज़ल
तुझ बिन बहुत ही कटती है औक़ात बे-तरह
जूँ-तूँ के दिन तो गुज़रे है पर रात बे-तरह