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ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
ख़ुशी क्या खेत पर मेरे अगर सौ बार अब्र आवे
समझता हूँ कि ढूँडे है अभी से बर्क़ ख़िर्मन को
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
आरज़ू है रात अँधेरी में कि आवे माह-रू
जिस के आगे रौशनाई शम्अ की बे-नूर है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
मरिए इस हसरत में गर क़ातिल न हाथ आवे कहीं
रोइए अपने पे ख़ुद गर नौहा-ख़्वाँ कोई न हो