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ग़ज़ल
ज़ईफ़ी में बशर लहव-ओ-लअ'ब को तर्क करते हैं
सफ़ेदी मू-ए-सर की नूर है क्या चश्म-ए-इबरत का
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
वक़्त की क़द्र न की लहव-ओ-लअ'ब में जिस ने
उम्र भर दस्त-ए-तअस्सुफ़ उसे मलते देखा