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ग़ज़ल
पान जो हाथ से कल ग़ैर के तू ने खाया
पी के लोहू को ग़रज़ घूँट रहे हम जूँ पीक
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
पी जा अय्याम की तल्ख़ी को भी हँस कर 'नासिर'
ग़म को सहने में भी क़ुदरत ने मज़ा रक्खा है
हकीम नासिर
ग़ज़ल
बादा फिर बादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ 'क़तील'
शर्त ये है कोई बाँहों में सँभाले मुझ को
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
मैं नज़र से पी रहा था तो ये दिल ने बद-दुआ दी
तिरा हाथ ज़िंदगी भर कभी जाम तक न पहुँचे