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ग़ज़ल
ऐसे आहु-ए-रम-ख़ुर्दा की वहशत खोनी मुश्किल थी
सेहर किया ए'जाज़ किया जिन लोगों ने तुझ को राम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
साया-ए-ज़ात से भी रम अक्स-ए-सिफ़ात से भी रम
दश्त-ए-ग़ज़ल में आ के देख हम तो ग़ज़ाल हो गए
जौन एलिया
ग़ज़ल
आँखें पुर-नम हो जाती हैं ग़ुर्बत के सहराओं में
जब उस रिम-झिम की वादी के अफ़्साने याद आते हैं
हबीब जालिब
ग़ज़ल
लम्हा-ब-लम्हा दम-ब-दम आन-ब-आन रम-ब-रम
मैं भी गुज़िश्तगाँ में हूँ तू भी गुज़िश्तगाँ में है
जौन एलिया
ग़ज़ल
बहुत धुँदला गया यादों की रिम-झिम में दिल-ए-सादा
वो मिल जाता तो हम ये आईना तब्दील कर लेते
सलीम कौसर
ग़ज़ल
ज़िंदगी इंसाँ की इक दम के सिवा कुछ भी नहीं
दम हवा की मौज है रम के सिवा कुछ भी नहीं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
फिर मेरी कमंद उस ने डाले ही तुड़ाई है
वो आहु-ए-रम-ख़ुर्दा फिर राम नहीं होता