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ग़ज़ल
कोई मौक़ा ज़िंदगी का आख़िरी मौक़ा नहीं
इस क़दर ताजील क्यों रफ़-ए-कुदूरत के लिए
हफ़ीज़ होशियारपुरी
ग़ज़ल
मगर लिखवाए कोई उस को ख़त तो हम से लिखवाए
हुई सुब्ह और घर से कान पर रख कर क़लम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
अब न है फ़िक्र-ए-हिफ़ाज़त और न ज़ीक़-ए-रफ़-ए-कार
देने वाले ने दिया और मेरी ख़्वाहिश भर दिया
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
ये निज़ाम-ए-बज़्म-ए-साक़ी कहीं रह सकेगा बाक़ी
कि ख़ुशी तो चंद लम्हे ग़म ओ दर्द जावेदानी
अली जवाद ज़ैदी
ग़ज़ल
तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़-राह-ए-लिहाज़
हाल-ए-दिल बातों ही बातों में जताना याद है