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ग़ज़ल
जिसे सूरत बताते हैं पता देती है सीरत का
इबारत देख कर जिस तरह मा'नी जान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
कभी अल्लाह-मियाँ पूछेंगे तब उन को बताएँगे
किसी को क्यूँ बताएँ हम इबादत क्यूँ नहीं करते
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
चमन तुम से इबारत है बहारें तुम से ज़िंदा हैं
तुम्हारे सामने फूलों से मुरझाया नहीं जाता
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
वो बद-ख़ू और मेरी दास्तान-ए-इश्क़ तूलानी
इबारत मुख़्तसर क़ासिद भी घबरा जाए है मुझ से