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ग़ज़ल
इर्तिक़ा क्या तिरी क़िस्मत में नहीं लिक्खा है
अब तमन्ना से गुज़र मेरा मुक़द्दर हो जा
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
तेरा मिरा क़ुसूर क्या ये तो है जब्र-ए-इर्तिक़ा
बस वो जो रब्त हो गया आप ही पा गया नुमू
जमीलुद्दीन आली
ग़ज़ल
मेरे नियाज़ पर है तंग दैर-ओ-हरम की ज़िंदगी
अब इसे अबतरी समझ या इसे इर्तिक़ा समझ