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ग़ज़ल
हाँ उन से मिरी तर्ज़-ए-मुलाक़ात अलग है
दीवाना हूँ मैं मेरी हर इक बात अलग है
नादिम अशरफी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
न बाहर ही लगे है दिल न घर जाने को जी चाहे
समझ में कुछ नहीं आता किधर जाने को जी चाहे
नादिम अशरफी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
जो तेरे नक़्श-ए-कफ़-ए-पा पे चल गए होते
तो मेहर-ओ-माह से आगे निकल गए होते
नादिम अशरफी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
था दाम-ए-हवस ही कुछ ऐसा वो लौट के आना भूल गया
जो बस्ती बस्ती फिरता था वो घर का रस्ता भूल गया
हकीम राज़ी अदीबी अशरफ़ी
ग़ज़ल
सल्तनत फ़क़्र की जिन को ही नहीं पेश-ए-निगाह
कौड़ी और अशरफ़ी यकसाँ-नज़री रहती है
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
रंज-ओ-ग़म की जब मिरे दिल में फ़रावानी न थी
जी रहा था मैं मगर जीने में आसानी न थी
नादिम अशरफी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
गुल में शफ़क़ में चाँद में तारों में खो गए
वो एक आप हैं जो हज़ारों में खो गए
नादिम अशरफी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
शिकायत-ए-ग़म-ए-लैल-ओ-नहार कैसे करूँ
मैं ख़ुद को अपनी निगाहों में ख़ार कैसे करूँ
नादिम अशरफी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
मिले सुराग़ तो मंज़िल का यूँ सुराग़ मिले
कफ़-ए-हसीं पे जलाए कोई चराग़ मिले