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ग़ज़ल
इक जाम खनकता जाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है
इक होश-रुबा इनआ'म कि साक़ी रात गुज़रने वाली है
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
शब कितनी बोझल बोझल है हम तन्हा तन्हा बैठे हैं
ऐसे में तुम्हारी याद आई जिस तरह कोई इल्हाम आए
नईम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
मैं ने कब दावा-ए-इल्हाम किया है 'ताबाँ'
लिख दिया करता हूँ जो दिल पे गुज़रती जाए
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
शैख़ जो है मस्जिद में नंगा रात को था मय-ख़ाने में
जुब्बा ख़िर्क़ा कुर्ता टोपी मस्ती में इनआ'म किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
दामन-ए-दिल पे नहीं बारिश-ए-इल्हाम अभी
इश्क़ ना-पुख़्ता अभी जज़्ब-ए-दरूँ ख़ाम अभी
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
क्यूँ भला इबलीस को इल्ज़ाम देते हो फ़क़त
तुम को ख़ैर-ओ-शर का भी इल्हाम होना चाहिए
हुमैरा गुल तिश्ना
ग़ज़ल
शैख़ ओ पंडित धर्म और इस्लाम की बातें करें
कुछ ख़ुदा के क़हर कुछ इनआम की बातें करें