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ग़ज़ल
किचन में तोड़ कर अंडे सितम तोड़ा है ये कह कर
सफ़ेदी आप की है और सारी ज़र्दियाँ मेरी
बुलबुल काश्मीरी
ग़ज़ल
जफ़ा-शिआरों में शायद आ जाए इस तरह कुछ असर वफ़ा का
मँगा के मुर्ग़ियों के अंडे बतों के नीचे बिठा दिए हैं
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
دو نین ہر قدم تل میں فرش کر بچھاؤں
جوں ہنس چلے لٹک تے سودھن ہنڈے انگن میں
क़ुतबुद्दीन क़ादरी फ़िरोज़ बेदरी
ग़ज़ल
हँसो तो साथ हँसेंगी दुनिया बैठ अकेले रोना होगा
चुपके चुपके बहा कर आँसू दिल के दुख को धोना होगा
मीराजी
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
लोग रो रो के भी इस दुनिया में जी लेते हैं
एक हम हैं कि हँसे भी तो गुज़ारा न हुआ
राजेन्द्र कृष्ण
ग़ज़ल
ख़ुद अपने हाल से उलझे हुए हैं तेरे दीवाने
हँसे जाए ज़माने की हँसी से कुछ नहीं होता
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
हँसे जो वो मिरे रोने पे तो सफ़-ए-मिज़्गाँ
न समझो तुम उसे दीवार-ए-क़हक़हा समझो