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ग़ज़ल
ये सर्दियों का उदास मौसम कि धड़कनें बर्फ़ हो गई हैं
जब उन की यख़-बस्तगी परखना तमाज़तें भी शुमार करना
नोशी गिलानी
ग़ज़ल
पढ़ता जा ये मंज़र-नामा ज़र्द अज़ीम पहाड़ों का
धूप खिली पलकों के ऊपर बर्फ़ जमी है आँखों में
बशीर बद्र
ग़ज़ल
सुना है बर्फ़ के टुकड़े हैं दिल हसीनों के
कुछ आँच पा के ये चाँदी पिघल तो सकती है