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ग़ज़ल
बसान-ए-नक़्श-ए-पा-ए-रह-रवाँ कू-ए-तमन्ना में
नहीं उठने की ताक़त क्या करें लाचार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
बिस्तर मिरा है ख़ार-ए-मुग़ीलाँ बसान-ए-क़ैस
लैला की है तुझे सफ़-ए-मिज़्गान की क़सम
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
चमन में गुल के मुरझाने से 'आग़ा' हो गया साबित
बिसान-ए-ग़ुंचा दम भर मुस्कुरा ले जिस का जी चाहे
आग़ा अकबराबादी
ग़ज़ल
वो कहाँ जलवा-ए-जाँ-बख़्श बुतान-ए-देहली
क्यूँ कि जन्नत पे किया जाए गुमान-ए-देहली
मीर मेहदी मजरूह
ग़ज़ल
सरगिरानी है अबस हम ख़ाकसारों से तुम्हें
या तो मिटने को बसान-नक़श-ए-पा बैठे हैं हम
हातिम अली मेहर
ग़ज़ल
न क्यूँ बहर-ए-शहादत सर झुकाएँ शौक़ से 'आशिक़
बसान-ए-तेग़ कहिए अबरू-ए-ख़मदार किस के हैं
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
बसान-ए-तख़्ता-ए-गुल मेरी फ़िक्र है आज़ाद
मिसाल-ए-क़ौस-ए-कुज़ह है मिरे ख़याल का रंग