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ग़ज़ल
बीवी बेटी बहन पड़ोसन थोड़ी थोड़ी सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी माँ
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
दानिश नक़वी
ग़ज़ल
पढ़ाने का अगर मतलब है हाथों से निकल जाना
ख़ुदाया फिर मिरी बेटी भी हाथों से निकल जाए
कुशल दौनेरिया
ग़ज़ल
शनासा ख़ौफ़ की तस्वीर है उस की बयाज़ों में
मिरी बेटी हसीं पिंजरे में इक चिड़िया बनाती है
साबिर शाह साबिर
ग़ज़ल
बेटा बेटी फ़ोन पर अक्सर बताते हैं मुझे
वक़्त मिलता ही नहीं है गाँव आने के लिए