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ग़ज़ल
हंगाम-ए-नज़्अ' गिर्या यहाँ बे-कसी का था
तुम हँस पड़े ये कौन सा मौक़ा हँसी का था
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
महकते लफ़्ज़ों में शामिल है रंग-ओ-बू किस की
ये मेरे शे'रों में होती है गुफ़्तुगू किस की
फ़ारूक़ बख़्शी
ग़ज़ल
किसी बे-कस के कासे में जो तू मक़्दूर हो जाए
गदा हो कर वो रश्क-ए-क़ैसर-ओ-मग़्फ़ूर हो जाए
इशरत हाफ़िज़ आबादी
ग़ज़ल
है सफ़र में कारवान-बहर-ओ-बर किस के लिए
हो रहा है एहतिमाम-ए-ख़ुश्क-ओ-तर किस के लिए