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ग़ज़ल
ये किस का तसव्वुर है ये किस का फ़साना है
जो अश्क है आँखों में तस्बीह का दाना है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
न कर तक़लीद ऐ जिबरील मेरे जज़्ब-ओ-मस्ती की
तन-आसाँ अर्शियों को ज़िक्र ओ तस्बीह ओ तवाफ़ औला
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ये प्यारी प्यारी चिड़ियाँ फिरती हैं जो चहकती
क़ुदरत ने तेरी उन को तस्बीह-ख़्वाँ बनाया
इस्माइल मेरठी
ग़ज़ल
बयाँ क्या कीजिए बेदाद-ए-काविश-हा-ए-मिज़गाँ का
कि हर यक क़तरा-ए-ख़ूँ दाना है तस्बीह-ए-मरजाँ का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बला-ए-जाँ हैं ये तस्बीह और ज़ुन्नार के फंदे
दिल-ए-हक़-बीं को हम इस क़ैद से आज़ाद करते हैं
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
दीं दे के गया कुफ़्र के भी काम से आशिक़
तस्बीह के साथ उस ने तो ज़ुन्नार भी छोड़ा
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
यहाँ तस्बीह का हल्क़ा वहाँ ज़ुन्नार का फंदा
असीरी लाज़मी है मज़हब-ए-शैख़-ओ-बरहमन में
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
है वो बे-वहदत कि जो समझे है कुफ़्र ओ दीं में फ़र्क़
रखती है तस्बीह रिश्ता तार से ज़ुन्नार के
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
सुर्ख़ी-ए-पाँ देख ले ज़ाहिद जो दंदाँ पर तिरे
उठ खड़ा हो हाथ से तस्बीह-ए-मरजाँ छोड़ कर