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ग़ज़ल
हुकूमत है न शौकत है न इज़्ज़त है न दौलत है
हमारे पास अब ले-दे के बाक़ी बस सक़ाफ़त है
ख़्वाजा रब्बानी
ग़ज़ल
मुनीर जाफ़री
ग़ज़ल
मुनीर जाफ़री
ग़ज़ल
महल मिस्मार हो कर भी सक़ाफ़त ज़िंदा रखते हैं
जबीं-ए-संग पर हम ने यही तहरीर देखी है