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ग़ज़ल
जनवरी ता जून की मेहनत मशक़्क़त ने जनाब
वक़्त से पहले ही चेहरे पर दिसम्बर लिख दिया
रुख़्सार नाज़िमाबादी
ग़ज़ल
बल बे-बारीकी कि गोया हर तिरा तार-ए-सुख़न
जंतरी में खिंच के निकला है दहान-ए-तंग से