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ग़ज़ल
झिड़कते हो मुझे क्यूँ दूर ही से पास आने दो
बढ़ा कर हाथ दिल देता हूँ तुम समझे हो साइल है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
वही ताएरों के झुरमुट जो हवा में झूलते थे
वो फ़ज़ा को देखते हैं तो अब आह भर रहे हैं