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ग़ज़ल
फिर वही जोहद-ए-मुसलसल फिर वही फ़िक्र-ए-मआश
मंज़िल-ए-जानाँ से कोई कामयाब आया तो क्या
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
ज़िंदगी नाम है इक जोहद-ए-मुसलसल का 'फ़ना'
राह-रौ और भी थक जाता है आराम के बाद
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
हासिल-ए-जोहद-ए-मुसलसल मुस्तक़िल आज़ुर्दगी
काम करता हूँ हवा में जुस्तुजू नायाब में
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
साहिल पे उस की ज'अद-ए-मुसलसल के अक्स से
दरिया में धोबियों को नज़र आए पाट साँप
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
अहमियत जोहद-ए-मुसलसल की नहीं कम 'हामिद'
सिर्फ़ तक़दीर का लिक्खा नहीं देखा जाता
हामिद मुख़्तार हामिद
ग़ज़ल
जज़्बा-ए-जोहद-ए-मुसलसल है बिना-ए-ज़िंदगी
ये गया तो सारा जीने का हुनर ले जाएगा