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ग़ज़ल
रूह-ए-कुल से सब रूहों पर वस्ल की हसरत तारी है
इक सर-ए-हिकमत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में
जौन एलिया
ग़ज़ल
लिपटना पर्नियाँ में शोला-ए-आतिश का पिन्हाँ है
वले मुश्किल है हिकमत दिल में सोज़-ए-ग़म छुपाने की
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
उस की तवज्जोह हासिल की और बीच में सब कुछ छोड़ दिया
हिकमत जितनी भी हो इस में हिमाक़त बहुत ज़्यादा है
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
शमीम करहानी
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
अध-खुली तकिए पे होगी इल्म-ओ-हिकमत की किताब
वसवसों वहमों के तूफ़ानों में घर जाएँगे हम
ज़ेहरा निगाह
ग़ज़ल
एक है जब शोर-ए-जह्ल ओ बाँग-ए-हिकमत का मआल
दिल हलाक-ए-ज़ौक़-ए-गुलबाँग-ए-परेशाँ क्यूँ न हो
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
किताब-ए-दिल मुझे काफ़ी है 'अकबर' दर्स-ए-हिकमत को
मैं स्पेन्सर से मुस्तग़नी हूँ मुझ से मिल नहीं मिलता