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ग़ज़ल
ज़माना आएगा उस वक़्त ख़ैर-मक़्दम को
जब इस जहाँ से 'मुज़फ़्फ़र' गुज़र चुका हूँगा
मुज़फ़्फ़र वारसी
ग़ज़ल
ख़ैर-मक़्दम को मिरे कोई ब-हंगाम-ए-सहर
अपनी आँखों में लिए शब का ख़ुमार आ ही गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
उन्हीं को हक़ है बहारों के ख़ैर मक़्दम का
गुज़र के जो किसी दौर-ए-ख़िज़ाँ से आए हैं