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ग़ज़ल
चारागरी बीमारी-ए-दिल की रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं
वर्ना दिलबर-ए-नादाँ भी इस दर्द का चारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
अब कूचा-ए-दिल-बर का रह-रौ रहज़न भी बने तो बात बने
पहरे से अदू टलते ही नहीं और रात बराबर जाती है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
मुझ को कुढ़ा कुढ़ा के वो मारेंगे जान से
दिलबर हुए तो क्या मिरे प्यारे हुए तो क्या
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
दिलबर हैं अब दिल के मालिक ये भी एक ज़माना है
दिल वाले कहलाते थे हम वो भी एक ज़माना था
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
वफ़ादारी ने दिलबर की बुझाया आतिश-ए-ग़म कूँ
कि गर्मी दफ़ा करता है गुलाब आहिस्ता-आहिस्ता
वली दकनी
ग़ज़ल
निकोहिश है सज़ा फ़रियादी-ए-बे-दाद-ए-दिलबर की
मबादा ख़ंदा-ए-दंदाँ-नुमा हो सुब्ह महशर की
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नज़र चश्म-ए-ख़रीदारी सीं करता दिलबर-ए-नादाँ
अगर क़तरे मिरे आँसू के दुरदाने हुए होते