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ग़ज़ल
हाथ जिस से कुछ न आए उस की ख़्वाहिश क्यूँ करूँ
दूध की मानिंद मैं पानी बिलो सकता नहीं
इक़बाल साजिद
ग़ज़ल
नीम की छाँव में बैठने वाले सभी के सेवक होते हैं
कोई नाग भी आ निकले तो उस को दूध पिला देना
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
नील-गगन में तैर रहा है उजला उजला पूरा चाँद
माँ की लोरी सा बच्चे के दूध कटोरे जैसा चाँद
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
तुम्हारी ही तरह हम भी रहे हैं आज तक प्यासे
न जाने दूध की नदियाँ किधर हो कर बहीं बाबा
कुंवर बेचैन
ग़ज़ल
उलझ कर काम में जब भूल जाती हूँ मैं ख़ुद को तब
वो माँ का दूध और रोटी खिलाना याद आता है
ऋतु सिंह राजपूत रीत
ग़ज़ल
बता कर दूध जब पानी दिया था साथ रोटी के
यूँ माँ का रात फिर बच्चों को बहलाना ज़रूरी था