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ग़ज़ल
लूटा जो उस ने मुझ को तो आबाद भी किया
इक शख़्स रहज़नी में भी रहबर लगा मुझे
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
बद है कोई न नेक है दोनों का मक़्सद एक है
गरचे है रहज़नी कुछ और गरचे है रहबरी कुछ और
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
रहज़नी है सर-ए-बाज़ार तुम्हें क्या मालूम
तुम तो हो क़ाफ़िला-सालार तुम्हें क्या मालूम