सुना है एक जहाँ इस जहाँ से पहले था
सुना है एक जहाँ इस जहाँ से पहले था
अजब जहाँ था अगर आसमाँ से पहले था
अगरचे सज्दे हैं मम्नून आस्ताँ लेकिन
मज़ाक़-ए-सज्दा मुझे आस्ताँ से पहले था
तुम्हीं कहो कभी तुम ने सुना था ख़ुश हो कर
तुम्हारा ज़िक्र जो मेरे बयाँ से पहले था
क़ुबूल-ए-ख़ातिर-ए-उश्शाक़ हो के रह न गया
तिरा फ़साना मिरी दास्ताँ से पहले था
न शौक़-ए-रहज़नी-ए-दिल न ज़ौक़-ए-ग़ारत-ए-जाँ
अजब तरीक़ मिरे कारवाँ से पहले था
बहार थी न ख़िज़ाँ बर्क़ थी न था सय्याद
चमन न था जो मिरे आशियाँ से पहले था
इसी जहान को इंकार था क़यामत का
यही जहान जो इक नौजवाँ से पहले था
कुछ इस तरह है मुझे दर्द-ए-इश्क़ का एहसास
ये जैसे मुझ को यूँही जिस्म-ओ-जाँ से पहले था
वो नाज़ बन के फिर आख़िर नियाज़ हो के रहा
उन्हें ग़ुरूर जो मेरी फ़ुग़ाँ से पहले था
ज़हे वो बज़्म कि होता है रोज़ ये महसूस
कि जैसे कोई तअ'ल्लुक़ यहाँ से पहले था
हुनूज़ दिल में उसी शद्द-ओ-मद से है 'बिस्मिल'
वो हौसला जो मुझे इम्तिहाँ से पहले था
- पुस्तक : Kulliyat-e-bismil Saeedi (पृष्ठ 31)
- रचनाकार : Bismil Saeedi
- प्रकाशन : Sahitya Akademi (2007)
- संस्करण : 2007
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