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ग़ज़ल
सुब्ह-ए-काज़िब की हवा में दर्द था कितना 'मुनीर'
रेल की सीटी बजी तो दिल लहू से भर गया
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
पौ फटते ही ट्रेन की सीटी जब कानों में गूँजती है
सर्वत तेरी याद मिरे दिल के ख़ानों में गूँजती है
आसिमा ताहिर
ग़ज़ल
बिछड़ के तुम से जब जब भी सुनी है रेल की सीटी
मेरे दिल पर मिरी जाँ पर क़यामत टूट जाती है
मैकश अमरोहवी
ग़ज़ल
जब पुरवाई सो जाती है बोझल बोझल पाँव लिए
अन-छूए पत्तों के पीछे इक सीटी सी बजती है