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ग़ज़ल
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
खुली फ़ज़ाओं में साँस लेना अबस है अब तो घुटन है ऐसी
कि चारों जानिब शजर खड़े हैं सलीब-सूरत तमाम लिखना
हसन रिज़वी
ग़ज़ल
ख़ालिद अलीग
ग़ज़ल
पा-ब-जौलाँ अपने शानों पर लिए अपनी सलीब
मैं सफ़ीर-ए-हक़ हूँ लेकिन नर्ग़ा-ए-बातिल में हूँ