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ग़ज़ल
नहीं इक़लीम-ए-उल्फ़त में कोई तूमार-ए-नाज़ ऐसा
कि पुश्त-ए-चश्म से जिस की न होवे मोहर उनवाँ पर
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
शरह-ए-बे-ताबी-ए-दिल नीं है क़लम की ताक़त
तपिश-ए-शौक़ के तूमार कूँ कुइ क्या जाने
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
ये किस अंदाज़ से कहते हैं सुन कर दास्ताँ मेरी
जहाँ पूछा किसी ने ले के ये तूमार-ए-ग़म बैठे
नूह नारवी
ग़ज़ल
क़िस्सा-ए-दर्द कूँ अंजाम नहीं मिस्ल-ए-'सिराज'
ग़म के दफ़्तर कूँ लपेट आह के तूमार कूँ खोल
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
जो कुछ कि तुम सीं मुझे बोलना था बोल चुका
बयान-ए-इश्क़ के तूमार कूँ मैं खोल चुका
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
जब मिले तूमार-ए-आगाही से फ़ुर्सत देखना
किन तहों में रम्ज़-ए-अक़्ल-ए-ना-रसा पोशीदा है
मोहम्मद आज़म
ग़ज़ल
इस दो-हर्फ़ी लफ़्ज़ में दफ़्तर के दफ़्तर हैं छुपे
दिल है इक तूमार-ए-पिन्हाँ इश्क़ की तफ़्सीर का