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ग़ज़ल
दूर हों चारा-गरान-ए-वक़्त बस अब दूर हों
'अस्र' की तकलीफ़ का दर्द-आश्ना तो एक है
मोहम्मद नक़ी रिज़वी असर
ग़ज़ल
दिल की शाख़ों पे उमीदें कुछ हरी बाँधे हुए
देखता हूँ तुझ को अब भी टिकटिकी बाँधे हुए
इरशाद ख़ान सिकंदर
ग़ज़ल
नहर किनारे धीरे धीरे शाम की देवी उतरी थी
चाँद ने हम से क्या पूछा था अब तो कुछ भी याद नहीं
नीलमा नाहीद दुर्रानी
ग़ज़ल
दरिया की मौज ही में नहीं इज़्तिराब है
संग-ए-रवाँ के दिल में भी इक ज़ख़्म-ए-आब है
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
हम अहल-ए-जब्र के नाम-ओ-नसब से वाक़िफ़ हैं
सरों की फ़स्ल जब उतरी थी तब से वाक़िफ़ हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
हंगामा बपा हश्र का ऐ दोस्तो जब हो
साक़ी-ए-गुल-अंदाम हो और बिन्त-ए-इनब हो