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ग़ज़ल
दूर हों चारा-गरान-ए-वक़्त बस अब दूर हों
'अस्र' की तकलीफ़ का दर्द-आश्ना तो एक है
मोहम्मद नक़ी रिज़वी असर
ग़ज़ल
हम अहल-ए-जब्र के नाम-ओ-नसब से वाक़िफ़ हैं
सरों की फ़स्ल जब उतरी थी तब से वाक़िफ़ हैं