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ग़ज़ल
है फ़क़त यही फ़साना मिरी 'उम्र-ए-मुख़्तसर का
मिरी क्या बिसात-ए-हस्ती हूँ चराग़ रात भर का
ख़दीजा मरयम
ग़ज़ल
इक दम-ए-गुज़राँ से 'उम्र-ए-मुख़्तसर बाँधे हुए
ख़ाक से हैं शाख़-ए-गुल को बे-ख़बर बाँधे हुए
सरमद सहबाई
ग़ज़ल
अंजुमन को फ़ैज़ पहुँचाएगी शम-ए-अंजुमन
क्या हसीं होती है उम्र मुख़्तसर देखेंगे लोग
रम्ज़ अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
तुम्हारे सारे मंसूबों का नस्लों पर अहाता है
सदा आती है उम्र-ए-मुख़्तसर की बात मत सोचो
हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
एक ख़्वाहिश के हज़ारों रंग उम्र-ए-मुख़्तसर
कुछ भी कर पाता नहीं मैं इस क़दर उजलत में हूँ
शफ़ीक़ सलीमी
ग़ज़ल
'हसन' ने 'इश्क़ से दामन बचा लिया अपना
बहुत से काम थे इक ‘उम्र-ए-मुख़्तसर के लिए
हसन मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
मुझे उम्र-ए-ख़िज़र देना कि उम्र-ए-मुख़्तसर देना
मिरे अफ़्कार लेकिन ज़िंदा-ए-जावेद कर देना
गौहर उस्मानी
ग़ज़ल
ग़म-ए-हयात ग़म-ए-आशिक़ी ग़म-ए-उक़्बा
कुछ और भी हो अता उम्र-ए-मुख़्तसर के लिए
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
ग़ज़ल
ग़म-ए-उम्र-ए-मुख़्तसर से अभी बे-ख़बर हैं कलियाँ
न चमन में फेंक देना किसी फूल को मसल कर
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
क्यों उम्र-ए-मुख़्तसर को करें वक़्फ़-ए-रंज-ओ-ग़म
दम भर तो ज़िंदगी की बहारों को देखिए