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ग़ज़ल
चाक पर्दे से ये ग़म्ज़े हैं तो ऐ पर्दा-नशीं
एक मैं क्या कि सभी चाक-ए-गरेबाँ होंगे
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
उन्हीं से ग़म्ज़े करती है जो तुझ पर जान देते हैं
अजल तुझ को भी कितना नाज़-ए-मअशूक़ाना आता है
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
इश्वे से ग़म्ज़े से शोख़ी से अदा से नाज़ से
मिटने वाला हूँ मिटा दीजे किसी तदबीर से
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
मुंतज़िर रखती है ग़म्ज़े करती है आती नहीं
ओ बुत-ए-तरसा तिरी फ़ुर्क़त में तरसाती है नींद
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
छुरी से पहले मुझ को तेरे ग़म्ज़े मार डालेंगे
कब आएगी अरे जल्लाद कब से तेज़ होती है