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ग़ज़ल
मुँह में जब बात रुकी चूम लिया प्यार से मुँह
दम-ए-तक़रीर किसी शोख़ की लुक्नत अच्छी
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
तुम्हारे लहजे की लुक्नत बता रही है मुझे
कि तुम ने ख़ुद से ही ये दास्ताँ गढ़ी हुई है
फ़राज़ महमूद फ़ारिज़
ग़ज़ल
तुम्हारे सामने आ कर ये लुक्नत सी जो पड़ती है
अधूरे बे-ज़बाँ हो के ये जुमले मार देते हैं
समीना गुल
ग़ज़ल
रअशा थी ज़बाँ में लुक्नत पाँव बेड़ी मोहरा देंगे
मुँह से कुछ का कुछ निकलेगा दिल में जो ठहराओगे तुम
रज़ा अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
दिल ने अभी बिछाई है जा-ए-नमाज़-ए-इश्क़
लुक्नत-ज़दा ज़बाँ की इक़ामत क़ुबूल कर
अम्मार यासिर मिगसी
ग़ज़ल
ज़बाँ में थी अभी लुक्नत कि हर्फ़-ए-इश्क़ कहा
लड़कपना था कि ज़ंजीर-ए-ख़द्द-ओ-ख़ाल हुए
तहसीन फ़िराक़ी
ग़ज़ल
दानिश अज़ीज़
ग़ज़ल
लब पे लुक्नत आँखों में वहशत है चेहरा ज़र्द है
इश्तियाक़-ए-हूर ने ज़ाहिद को कैसा कर दिया