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ग़ज़ल
मेरी बला से झुकने वालों में मा'बूद भी शामिल हों
लेकिन मिरे सज्दों में बुत-ख़ाने के आदाब नहीं
फ़ैसल अज़ीम
ग़ज़ल
मुश्किल है कि पहलू से जुदा दिल नहीं होता
और मेरे सताने से वो ग़ाफ़िल नहीं होता
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
इस लिए मिलता है वो माह-ए-लक़ा तीसरे दिन
रुख़ बदलती है ज़माने की हवा तीसरे दिन
अबुल बक़ा सब्र सहारनपुरी
ग़ज़ल
चश्म-ए-साक़ी हो इधर भी दौरा-ए-जाम-ए-निगाह
हैं दरून-ए-ख़ाना-ए-उल्फ़त में हैं शामिल और भी
हरभजन सिंह सोढ़ी बिस्मिल
ग़ज़ल
वो भी क्या दिन थे कि जब उस का मिरा याराना था
आप से बेगाना वो था ख़ुद से मैं बेगाना था
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
ग़रीब-ख़ाना तो दौलत-सरा के है नज़दीक
कभी गुज़र हो इधर भी तो माह-ओ-साल के बा'द
सय्यद अमीर हसन बद्र
ग़ज़ल
आते हैं लख़्त-ए-जिगर कट कट के मुश्किल से अलग
जू-ए-ख़ूँ आँखों को होती है रवाँ दिल से अलग
मोहम्मद ज़करिय्या ख़ान
ग़ज़ल
उस के पैकर की झलक राहों पे थी नज़दीक ओ दूर
कल ग़ुरूब-ए-महर था इक आईना-ख़ाना मुझे