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आते हैं लख़्त-ए-जिगर कट कट के मुश्किल से अलग

मोहम्मद ज़करिय्या ख़ान

आते हैं लख़्त-ए-जिगर कट कट के मुश्किल से अलग

मोहम्मद ज़करिय्या ख़ान

MORE BYमोहम्मद ज़करिय्या ख़ान

    आते हैं लख़्त-ए-जिगर कट कट के मुश्किल से अलग

    जू-ए-ख़ूँ आँखों को होती है रवाँ दिल से अलग

    रखिए क्यों तस्वीर-ए-यार आईना-ए-दिल से अलग

    नक़्श-ए-हैरत कब हुआ है माह-ए-कामिल से अलग

    जान-ए-पुर-हसरत हुई यूँ जिस्म-ए-बिस्मिल से अलग

    हाथ दामन से जुदा सर पा-ए-क़ातिल से अलग

    जोश-ए-वहशत में ब-रंग-ए-बू-ए-गुल आज़ाद हैं

    उस के दीवाने रहे क़ैद-ए-सलासिल से अलग

    मैं सितम-कश हूँ जहाँ में वो मताअ'-ए-ना-क़ुबूल

    बर्क़ भी क़िस्मत से गिरती है तो हासिल से अलग

    देखना काफ़िर बुतों की शोख़ियाँ बहर-ए-ख़ुदा

    बुत-कदे में चश्म के हैं का'बा-ए-दिल से अलग

    सीना मुजमिर ग़म शरर दिल मुश्त-ए-ख़स दम बाद-ए-तुंद

    नाला वो शोला कि हो अज्ज़ा-ए-शामिल से अलग

    जम्अ थे अश्क आँख में मिज़्गाँ से फैले हर तरफ़

    मर्दुम-ए-कश्ती-नशीं होते हैं साहिल से अलग

    लाज़िम-ए-रू-ए-मुनव्वर है तिरा ख़ाल-ए-सियाह

    दाग़ होता ही नहीं है माह-ए-कामिल से अलग

    अल्लह अल्लह इम्तियाज़-ए-इज्ज़-ओ-नाज़-ए-इश्क़-ओ-हुस्न

    सारबाँ कहता है मजनूँ को कि महमिल से अलग

    किश्त से ख़िरमन हुआ ख़िरमन का ये अंजाम है

    दाग़-ए-बर्बादी उठाया रंज-ए-हासिल से अलग

    इत्तिहाद-ए-ज़ात है मा'नी मगर इदग़ाम-ए-इश्क़

    मिल गए दो दिल तो फिर होते हैं मुश्किल से अलग

    हिज्र-ए-जानाँ में दिमाग़-ए-नाला-ए-मौज़ूँ कहाँ

    आशियाँ अपना बनाएँगे अनादिल से अलग

    बे-ख़ुदी दर-पर्दा है हंगामा-साज़-ए-अंजुमन

    गोशा-ए-ख़ातिर में हैं वो अहल-ए-महफ़िल से अलग

    मौत है गोया क़दम रखना है राह-ए-इश्क़ में

    हम-सफ़र होने लगे पहली ही मंज़िल से अलग

    ख़्वाब में भी हम को है ज़ौक़-ए-तमाशा-ए-जमाल

    दीदा-ए-बेदार दिल है चश्म-ए-ग़ाफ़िल से अलग

    हैफ़ दर्द-ए-सख़्त-जानी वाए उज़्र-ए-नाज़ुकी

    हो नहीं सकता मिरा सर दस्त-ए-क़ातिल से अलग

    हम ने देखा रिंद-ओ-मस्त-ए-बे-तअल्लुक़ है 'ज़की'

    कुफ़्र-ओ-दीं से बे-ख़बर हक़ और बातिल से अलग

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