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ग़ज़ल
मिरी सैराबियों को तिश्नगी पर छोड़ दो यारो
ये नागिन ख़ुद-ब-ख़ुद अपना मदारी थाम लेती है
ताैफ़ीक़ साग़र
ग़ज़ल
दिखाता खेल है सब को 'अज़ल' बन कर मदारी और
तमाशा देखता है जो वो हर इंसान मिट्टी है