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ग़ज़ल
इशरत-ए-ख़ुल्द के लिए ज़ाहिद-ए-कज-नज़र झुके
मशरब-ए-इश्क़ में तो ये जुर्म है बंदगी नहीं
एहसान दानिश
ग़ज़ल
वो जानता है वुसअत-ए-मशरब के राज़ को
देखा है जिस ने आलम-ए-बे-इंतिहा-ए-क़ल्ब
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
पिलाना पानी का जाम ज़ाहिद गुनाह मशरब में है हमारे
सवाब लेता नहीं है क्यूँ तू शराब मुझ को पिला पिला कर
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
अज़ल से हक़-परस्ती बुत-परस्ती सुनते आते हैं
मगर ये आप का मशरब निराला ख़ुद-परस्ती है
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
रिंद-ए-मशरब कोई 'बेख़ुद' सा न होगा वल्लाह
पी के मस्जिद ही में ये ख़ाना-ख़राब आता है
बेख़ुद देहलवी
ग़ज़ल
न मज़हब है न मशरब है कोई हम बादा-ख़्वारों का
हमें मशरब से क्या निस्बत हमें मज़हब से क्या मतलब
नूह नारवी
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
मशरब में तो दुरुस्त ख़राबातियों के है
मज़हब में ज़ाहिदों के नहीं गर रवा शराब