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ग़ज़ल
वो जिस ख़ुलूस की शिद्दत ने मार डाला 'नूर'
वही ख़ुलूस मुक़र्रर मिरी तलाश में है
कृष्ण बिहारी नूर
ग़ज़ल
तबीबो तुम अबस आए मैं कुश्ता हूँ फिरंगन का
मिरी तदबीर करने को मुक़र्रर डॉक्टर होगा
आग़ा अकबराबादी
ग़ज़ल
मुक़र्रर कुछ न कुछ इस में रक़ीबों की भी साज़िश है
वो बे-परवा इलाही मुझ पे क्यूँ गर्म-ए-नवाज़िश है