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ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
दिन के उजालों में शायद मैं ख़ुद से बिछड़ा रहता हूँ
रात की तारीकी में इक ख़्वाहिश मचले ख़ामोशी से
रफ़ीक़ ख़याल
ग़ज़ल
सोते से तो उठने दो टुक उस को सहर होते
देखोगे कि मचलेगी वो चश्म-ए-ख़ुमारी क्या
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
देते न चाट अगर लब-ए-शीरीं के ज़िक्र की
मचले था तिफ़्ल-ए-अश्क बहलना मुहाल था
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
ग़ज़ल
हमारे दिल में मचलेगी किसी की आरज़ू कब तक
जुनून-ए-इश्क़ में भटकेंगे हम यूँ कू-ब-कू कब तक