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ग़ज़ल
ना-साज़ है जो हम से उसी से ये साज़ है
क्या ख़ूब दिल है वाह हमें जिस पे नाज़ है
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
तिरे कानों में गूँजी क्या मिरी आवाज़ जान-ए-मन
मैं रोता हूँ तबीअ'त है बहुत ना-साज़ जान-ए-मन
अदनान हामिद
ग़ज़ल
थक गए दुनिया की ख़ातिर ख़ुद को दे दे कर फ़रेब
आज फिर अपने दिल-ए-ना-साज़ की बातें करें
मीनू बख़्शी
ग़ज़ल
सुकून-ए-क़ल्ब हासिल है परेशाँ मैं नहीं दिलबर
जो तुम से दूर होता है वही ना-साज़ होता है
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
ग़ज़ल
जाने किस किस ने लहू दे कर सँवारा है इसे
दौर-ए-हाज़िर में मगर ना-साज़ है उर्दू ग़ज़ल
आतिश मुरादाबादी
ग़ज़ल
शिकवा न मुझे ग़ैर से ने यार की ख़ू से
दुश्मन मिरे ऐ ताला-ए-ना-साज़ हुए तुम
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
कल 'जहाँदार' हम और यार थे टुक मिल बैठे
बख़्त-ए-ना-साज़ ने फिर आज बिठाया तन्हा