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ग़ज़ल
हम भी ऐ जान-ए-मन इतने तो नहीं नाकारा
कभी कुछ काम तू हम को भी तो फ़रमाया कर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
कभी सर फोड़ने देती नहीं दीवार से 'ताबिश'
ये क्या दीवानगी है जो हमें नाकारा रखती है
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
किस दिन दामन खींच के उन ने यार से अपना काम लिया
मुद्दत गुज़री देखते हम को 'मीर' भी इक नाकारा है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
शान-ए-इश्क़ औला है मजनूँ दूदमान-ए-इश्क़ से
ना-ख़लफ़ ना-क़ाबिल ओ नालायक़ ओ नाकारा था
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
यही इक दिल है बेचारा भला है या कि नाकारा
अगरचे है ये आवारा व लेकिन है वफ़ा-परवर
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मुसतफ़ा राही
ग़ज़ल
दम साधे ज़बाँ बाँधे कभी सर न उठाएँ झुकते चले जाएँ
नाकारा हुई पोच सी ये सोच तिरी अब चल सोच नई अब
शमीम अब्बास
ग़ज़ल
कब का कार-ए-इश्क़ में 'ग़ाज़ी' का जीवन कट गया
कहने दो कहते हैं जो नाकारा-ओ-कामिल मुझे
शाहिद ग़ाज़ी
ग़ज़ल
अमल नहीं तो ये अलक़ाब सब हैं नाकारा
ये शैख़-ओ-सय्यद-ओ-अफ़्ग़ान-ओ-जाफ़री क्या है
अल-हाज अल-हाफीज़
ग़ज़ल
लिया उन का सहारा डूबने वालों ने ऐ 'बरतर'
जिन्हें नाकारा हम समझे वही तिनके अहम निकले
बरतर मदरासी
ग़ज़ल
हम तो बेकारी की वहशत से फ़ना हो जाते
हम से नाकारा पे दफ़्तर ने बड़ा रहम किया