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ग़ज़ल
कुछ ग़ज़लें उन ज़ुल्फ़ों पर हैं कुछ ग़ज़लें उन आँखों पर
जाने वाले दोस्त की अब इक यही निशानी बाक़ी है
कुमार पाशी
ग़ज़ल
मैं अक्सर खो सा जाता हूँ गली-कूचों के जंगल में
मगर फिर भी तिरे घर की निशानी याद रखता हूँ