जीवन को दुख दुख को आग और आग को पानी कहते
जीवन को दुख दुख को आग और आग को पानी कहते
बच्चे लेकिन सोए हुए थे किस से कहानी कहते
सच कहने का हौसला तुम ने छीन लिया है वर्ना
शहर में फैली वीरानी को सब वीरानी कहते
वक़्त गुज़रता जाता और ये ज़ख़्म हरे रहते तो
बड़ी हिफ़ाज़त से रक्खी है तेरी निशानी कहते
वो तो शायद दोनों का दुख इक जैसा था वर्ना
हम भी पत्थर मारते तुझ को और दीवानी कहते
तब्दीली सच्चाई है इस को मानते लेकिन कैसे
आईने को देख के इक तस्वीर पुरानी कहते
तेरा लहजा अपनाया अब दिल में हसरत सी है
अपनी कोई बात कभी तो अपनी ज़बानी कहते
चुप रह कर इज़हार किया है कह सकते तो 'आनस'
एक अलाहिदा तर्ज़-ए-सुख़न का तुझ को बानी कहते
- पुस्तक : Muallim-e-urdu(Lucknow) (पृष्ठ 34)
- रचनाकार : Izhar Ahmad
- प्रकाशन : Published by Izhar ahmad Editor,and publisher at the Shagufta printers Lucknow & Distributed simmam Publication 499/129 Hasanganj lucknow-226020 (February-1992)
- संस्करण : February-1992
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